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माइटोकॉन्ड्रिया किसे कहते हैं? | संरचना | कार्य

यूकैरियोटिक कोशिकाओं का भाग, कोशिशद्रव्य में अनेक सूक्ष्म गोलाकार, छड़ या कण के आकार की संरचनाएं पाई जाती हैं, जिनको माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) कहते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया किसे कहते हैं?

यूकैरियोटिक कोशिकाओं का भाग, कोशिशद्रव्य में अनेक सूक्ष्म गोलाकार, छड़ या कण के आकार की संरचनाएं पाई जाती हैं, जिनको माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) कहते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया सूत्रकणिका या काँड्रियोसोम भी बोलते हैं। इनको सबसे पहले वैज्ञानिक कोलिकर  ने सन् 1850 में और फ्लेमिंग (Flemming) ने सन् 1882 में देखा था। उसके बाद सन् 1890 में वैज्ञानिक अल्टमान (Altmann) ने इनका वर्णन बायोब्लास्ट (bioblast) के नाम से किया था। इसके बाद सन् 1897 में बेन्डा ने इनको माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) नाम दिया था।

यह Mitos व Chondrion नामक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसमें से Mitos को thread - तन्तु और Chondrion को granule - कण कहते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया बैक्टीरिया तथा नीली-हरी शैवालों की कोशिकाओं को छोड़कर पौधों तथा जन्तुओं की सामान्यतः समस्त जीवित कोशिकाओं में पाए जाते हैं। इनकी लंबाई सामान्यतः 1.5 माइक्रोन से 5 माइक्रोन तक होती है और इनका व्यास 0.5 माइक्रोन से 1.0 माइक्रोन तक होता है। माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या प्रत्येक कोशिकाओं में अलग-अलग होती है।

माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना का वर्णन

यह 60 एंगस्ट्राम मोटी व वसा-प्रोटीन द्वारा बनी बाहरी व भीतरी दो झिल्लियों द्वारा घिरी रहती है। माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना इकाई झिल्ली (Unit Membrane) की तरह होती है। बाहरी झिल्ली प्लेन अर्थात् सपाट होती है लेकिन भीतरी झिल्ली अंदर की तरफ माइटोकॉन्ड्रिया की गुहा में बहुत-सी हाथ की अंगुलियों की भांति की रचनाएं बनाती हैं, जिनको क्रिस्टी (Cristae) कहते हैं।

अंदर की झिल्ली माइटोकॉन्ड्रिया को दो विभिन्न कोष्ठों में बांटती है-

  1. बाहरी कोष्ठ
  2. भीतरी कोष्ठ

बाहरी कोष्ठ (Outer chamber)

यह भीतरी व बाहरी झिल्लियों के बीच का स्थान होता है, जो कि लगभग 60 से 80 एंगस्ट्राम होता है।

भीतरी कोष्ठ (Inner Chamber)

यह भीतरी झिल्ली द्वारा घिरा हुआ बीच का काफी बड़ा स्थान होता है, जिसमें सघन व कणिकायुक्त पदार्थ भरा रहता है। जिसको मैट्रिक्स कहते हैं। भीतरी झिल्ली व क्रिस्टी की सतह पर बहुत से 80 से 100 एंगस्ट्राम लम्बाई के सूक्ष्म कण पाए जाते हैं। प्रत्येक कण तीन भागों में बंटा रहता है-

  1. आधार (Base)- यह चौकोर टुकड़ों की तरह होता है और इसी के द्वारा कण झिल्ली से लगा रहता है।
  2. वृन्त (Stalk)- यह आधार और सिर को जोड़ता है। यह एक छड़ के आकार का होता है।
  3. सिर (Head)- यह गोलाकार एवं वृन्त के ऊपर स्थित होता है। इन्हें प्रारम्भिक कण, F1 कण या ऑक्सीसोम (Oxysome) भी कहते हैं।

F1 कणों में इलेक्ट्रॉन अभिगमन-तन्त्र एवं 'ऑक्सिकीय फॉस्फोरिलीकरण (Oxidative Phosphorylation) में काम आने वाले एन्जाइम पाए जाते हैं। इसी कारण इनको) क 'इलेक्ट्रॉन अभिगमन कण' (Electron transport particle) कहा गया।

माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य

माइटोकॉन्ड्रिया को 'कोशिका का विद्युत गृह' (Power house of cell) कहा गया है, क्योंकि कोशिकाओं तथा पौधे और जंतुओं के शरीर को 95% से अधिक ऊर्जा माइटोकॉन्ड्रिया से प्राप्त होती है। इन संरचनाओं में ऑक्सीश्वसन की क्रिया होती है, जिसके फलस्वरूप उच्च ऊर्जा वाले ATP यौगिक का निर्माण होता है। ATP में ऊर्जा संचित रहती है और कोशिकाओं को अपने अनेक कार्य-कलापों को सम्पन्न करने के लिए मिलती रहती है। ग्लूकोज के एक ग्राम अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से जितनी ऊर्जा विमुक्त होती है, उससे 38 ATP अणुओं का निर्माण होता है। ऑक्सीकरण की यह क्रिया तीन निम्न तीन सोपानों में होती है-

  1. क्रेब्स चक्र (Krebs' Cycle)
  2. इलेक्ट्रॉन अभिगमन तन्त्र (Electron Transport System)
  3. फॉस्फोरिलेटिंग तन्त्र (Phosphorylation System)

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