Advertisement

Responsive Advertisement

प्रदूषण किसे कहते हैं? | यह कितने प्रकार के होते हैं?

प्रदूषण वायुमंडल/पर्यावरण में हानिकारक पदार्थों की  एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इन्हीं हानिकारक पदार्थों को प्रदूषक (Pollutant) कहते हैं। प्रदूषक प्राकृतिक, मानव गतिविधि द्वारा बनाए जा सकते हैं। ज्वालामुखी की राख एक प्राकृतिक प्रदूषक होता है और कंपनियों द्वारा उत्पादित कचरा मानव गतिविधि का प्रदूषक है। प्रदूषक पानी, हवा व जमीन की गुणवत्ता को हानि पहुंचाता है।

प्रदूषण किसे कहते हैं? | pradooshan kise kahate hain

"यह हवा (Air), जल (Water) व स्थल की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं का वह अवांछनीय परिवर्तन है, जो कि मनुष्य व अन्य जंतुओं, पौधों तथा जीवधारियों के लिए आवश्यक पदार्थों और हमारी विभिन्न वस्तुओं को किसी भी रूप में नुकसान पहुंचाता है।"

ज्वालामुखी की राख एक प्राकृतिक प्रदूषक होता है और कंपनियों द्वारा उत्पादित कचरा मानव गतिविधि का प्रदूषक है।

ई. पी. ओडम (E. P. Odam) के शब्दों में, "वायु, जल या भूमि (earth) के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले ऐसे अनचाहे परिवर्तन जो मनुष्य एवं अन्य जीवधारियों, उनकी जीवन परिस्थितियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए हानिकारक हों, प्रदूषण (Pollution) कहलाते हैं।"

प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं?

यह मुख्यत: पांच प्रकार के होते हैं, जो कि निम्न प्रकार से हैं-

  1. वायु प्रदूषण
  2. जल प्रदूषण
  3. मृदा प्रदूषण
  4. ध्वनि प्रदूषण
  5. रेडियोधर्मी प्रदूषण

वायु प्रदूषण क्या है in Hindi? | वायु प्रदूषण किसे कहते हैं?

वायुमंडल में कई प्रकार की गैसें जीवधारियों की अनेक क्रियाओं के द्वारा एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। इन गैसों का असंख्य जीवधारियों और वायुमंडल के बीच चक्रीकरण होता रहता है। जब किन्हीं कारणों से अनेकों गैसों की मात्रा एवं अनुपात में परिवर्तन होता है, तो इसे वायु प्रदूषण (Air Pollution) कहते हैं।

वायु प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Air Pollution)

अनेक प्रकार के कार्बन के कण, विषाक्त गैसें, धुआं व खनिज तत्वों के कण वायुमंडल में निम्न साधनों द्वारा उत्पन्न होते हैं-

  1. रासायनिक कारखाने- पेट्रोल साफ करने के कारखाने, सीमेण्ट, उर्वरक, कागज, चीनी मिट्टी, कांच आदि वस्तुओं के कारखानों में अनेकों तरह की विषैली गैसों; जैसे- गन्धक, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन और नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनते हैं, जो कि चिमनियों से होकर वायु/हवा में मिल जाते हैं।
  2. रेडियोधर्मी पदार्थ- जीवमण्डल में परमाणवीय विस्फोट से रेडियोधर्मी पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है।
  3. दहन- ट्रक, मोटरगाड़ी, रेलगाड़ी आदि में कोयला, डीजल तथा पेट्रोल के जलने से धुआं तथा अनेकों विषैली गैसें NO, CO उत्पन्न होती है, जो कि वायुमंडल को दूषित करती हैं। धुएं में कार्बनिक पदार्थों के अतिरिक्त सीसा, जिंक, कैडमियम आदि भी होते हैं।

वायु प्रदूषकों के प्रभाव (Effects of Air Pollutants)

इनके प्रभाव निम्न प्रकार से हैं-

  1. कार्बन मोनोऑक्साइड- इसका रासायनिक सूत्र- CO होता है। इसका प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। इससे मनुष्य की सोचने समझने की शक्ति कम हो जाती है।
  2. सल्फर डाइऑक्साइड- इसका रासायनिक सूत्र- SO2 होता है। यह गैस हमारे लिए अर्थात् मनुष्य के लिए बहुत हानिकारक होती है। यह गैस पानी में घुलकर सल्फ्यूरिक अम्ल बनाती है, जो कि हमारे फेफड़ों में ऊतकों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है और इससे मनुष्य को तेज खांसी का रोग हो जाता है।
  3. ओजोन- इसका रासायनिक सूत्र- O3 होता है। यह गैस वायुमंडल में कपड़े, रबर आदि को नुकसान पहुंचाती है। इससे अतिरिक्त आंख के रोग, सीने में जलन, खांसी आदि रोग हो जाते हैं।
  4. नाइट्रोजन के ऑक्साइड- इस गैस से मनुष्य की रोग-प्रतिरोध शक्ति कम हो जाती है। इसका व सल्फर डाइऑक्साइड गैस का संबंध फेफड़ों के कैंसर से है।
  5. बेन्जीन एवं पायरीन- इसके संपर्क में आने से मनुष्य को कैंसर हो जाता है।
  6. कैडमियम- इससे मनुष्य को हृदय संबंधी रोग हो जाता है।
  7. जिंक, टिन, क्रोमियम- इन कणों से मनुष्य को कई शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं।
  8. धुआं और कार्बन के कण- इससे मनुष्य को टी. बी. व कैंसर रोग हो जाता है।
  9. प्रदूषित वायु- इससे मनुष्य को त्वचा रोग और मुहांसे आदि हो जाते हैं।

वायु प्रदूषण को हम कैसे रोक सकते हैं?

  • प्रत्येक स्थान पर पेड़-पौधे व वन अधिक मात्रा में लगाने चाहिए।
  • कारखानों या कंपनियों को आबादी से दूर लगाना चाहिए।
  • खाली जमीन को नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि खाली जमीन की धूल उड़ती है, जो कि वायु को प्रदूषित करती है। इसलिए बन सके तो वहां पर पेड़-पौधे या पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए।
  • मकान को बनाते समय यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि हवा व सूर्य के प्रकाश के आने-जाने की व्यवस्था रहे तथा मकान को सड़कों आदि से दूर बनाया जाए।
  • घरों में जहां पर अंगीठी जलाई जाती है, वहां पर धुआं निकलने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  • कारखानों व कंपनियों की चिमनियों को अधिक ऊंचा करके लगाना चाहिए और इसके साथ ही धुएं को करने करने के लिए अच्छे फिल्टर को उपयोग में लाना चाहिए।
  • कूड़ा-करकट, गोबर को बाहर न फेंककर, इनको गोबर गैस आदि बनाने में उपयोग में लाना चाहिए।
  • जिस स्थानों पर अधिक वाहन चलते हैं, वहां की सड़कें पक्की होनी चाहिए। ऐसा इसलिए होना चाहिए क्योंकि कच्ची सड़कों से धूल अधिक उड़ती है और यह धूल हवा/वायु को प्रदूषित करती है। यदि ऐसा न हो सके तब कच्ची सड़कों पर धूल को उड़ने से रोकने के लिए पानी छिड़कने की भी व्यवस्था होनी चाहिए।

जल प्रदूषण किसे कहते हैं?

आप लोगों ने यह तो सुना ही होगा कि 'जल ही जीवन है' अर्थात् जल के बिना किसी भी प्राणी व पौधों का जीवित रहना असंभव है। यह प्रत्येक जीवधारियों के लिए महत्वपूर्ण होता है। सभी पौधे आवश्यक खनिज तत्व जल में घुली अवस्था में प्राप्त करते हैं। पौधों द्वारा बनाए गए भोजन का स्थानांतरण भी तरल रूप में होता है। जल के द्वारा ही शरीर की सभी जैविक क्रियाएं संपन्न होती हैं और दूषित जल को उपयोग में लाने से शरीर भी विषाक्त हो जाता है।

जब जल में विषाक्त पदार्थ; जैसे- रासायनिक पदार्थ, वाहित मल, कारखानों के अवशिष्ट उत्पाद, कूड़ा-करकट आदि गिरते हैं, तब जल दूषित हो जाता है। इस तरह से जल का दूषित होना जल प्रदूषण (Water Pollution) कहते हैं।

जल प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Water Pollution)

  • हानिकारक जीवाणु व विषाणु।
  • निष्कासित घरेलू अपमार्जक।
  • संश्लेषित रसायन।
  • जल में प्रवाहित मल-मूत्र को फेंकना।
  • जल में प्रवाहित मृत जीवों के शव।
  • नदियों में प्रवाहित औद्योगिक कारखानों के गंदे अपशिष्ट उत्पाद।
  • अनेकों ईंधन पदार्थों व जले हुए पदार्थ को जल में मिलाना।
  • कृषि कार्य या किसानी में उपयुक्त कीटनाशक पदार्थ (Insecticide); जैसे- डी.डी.टी., कार्बनिक फॉस्फेट व अपतृणनाशक पदार्थों (Weedicides) का किसी माध्यम से जल में पहुंचना।

जल प्रदूषकों के प्रभाव (Effects of Water Pollutants)

  • दूषित जल को पीने से आंत-रोग, हैजा, पीलिया तथा अपच आदि रोग हो जाते हैं।
  • जल गंदा को जाने के कारण सूर्य (Sun) का प्रकाश जलीय पौधों तक नहीं पहुंच पाता है। जिससे संश्लेषण की क्रिया रूक जाती है और पौधे मर जाते हैं साथ-ही-साथ मछलियां तथा अन्य जीव-जंतु, जो कि जलीय पौधों पर निर्भर रहते हैं, वह भी मर जाते हैं।
  • जीवाणु व विषाणु युक्त दूषित पानी पीने से मनुष्यों व पशुओं में तरह-तरह की बीमारियां हो जाती हैं।
  • तेलीय प्रदूषण के कारण मछलियों को उचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलती और वह बड़ी संख्या में मरने लगते हैं।
  • प्रदूषित जल खेती योग्य जमीन को भी नष्ट कर देता है। तालाबों या नदियों की तलहटी में एकत्रित हाइड्रोजन सल्फाइड गैस गन्धक के अम्ल में बदल जाती है। जिसके प्रभाव से जलीय जीवधारियों की मौत हो जाती है।
  • जल व सूक्ष्म पौधों के माध्यम से ही सीसे व पारे के यौगिक मछलियों के शरीर में पहुंचते हैं। जिनको मनुष्य द्वारा खाने से नेत्र व मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय (Control Measure of Water Pollution)

  • कारखानों/कंपनियों से निकलने वाले जहरीले अपशिष्ट पदार्थों व गर्म जल को तालाबों, नदियों या समुद्रों में नहीं गिराना चाहिए।
  • जिन तालाबों का पानी मनुष्य या जानवर पीते हों, उनमें गंदी वस्तुएं या कपड़े नहीं धोने चाहिए।
  • खेत में कीटनाशक दवाओं का उपयोग करते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि खेत का पानी जलाशयों या तालाबों में बहकर न जाए।
  • कूड़ा-करकट को जलाशयों में न डालकर शहर से बाहर किसी भी गड्ढे में डालकर मिट्टी से ढक देना चाहिए।
  • घर से निकले हुए अपमार्जक व गन्दे जल और वाहित मल को शहर के निकट नदियों या तालाबों में न गिराकर नालियों द्वारा बाहर ले जाकर आबादी से दूर गिराना चाहिए।

मृदा प्रदूषण किसे कहते हैं?

इसको भू प्रदूषण भी कहते हैं। मृदा अर्थात् मिट्टी में अनेकों तरह के लवण, कार्बनिक पदार्थ, खनिज लवण, गैसें व मृदा-जल एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में होते हैं। 

"मृदा में इन पदार्थों की मात्रा एवं अनुपात में किन्हीं कारणों से उत्पन्न अवांछनीय परिवर्तन, मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) कहलाता है।

मृदा प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Soil Pollution)

  • अनेकों कंपनियों जैसे- लुगदी तथा कागज मिल (Pulp and Paper mills), तेलशोधक कारखाने (Refineries), ऊर्जा तथा ताप संयंत्र (Energy and thermal Plants), रसायन तथा खाद उत्पादन (Chemical and Fertilizer industries), प्लास्टिक तथा रबर (Plastic and Rubber) संयंत्र आदि मृदा प्रदूषण के प्रमुख स्त्रोत हैं।
  • खानों-खदानों आदि की मृदा में अनेक प्रदूषक पदार्थ; जैसे- जस्ता, सीसा, कैडमियम, तांबा, निकिल, आर्सेनिक आदि पाए जाते हैं।
  • काफी मात्रा में ठोस अपशिष्ट पदार्थ; जैसे- पैकिंग का व्यर्थ सामान, प्रयोग किए गए कोयले की राख, धातु, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी के टूटे बर्तन, एल्यूमीनियम, कांच आदि घरों से निकाले जाते हैं, यह सभी प्रदूषणकारी पदार्थ हैं।
  • आधुनिक कृषि में रासायनिक खादों (Chemical Fertilizer), कीटाणुनाशी (Pesticides), अपतृणनाशी (Weedicides), कवकनाशी (Fungicides), कीटनाशी (Insecticides) आदि पदार्थों के अधिक उपयोग से मृदा प्रदूषण होता है।

मृदा प्रदूषकों के प्रभाव (Effects of Soil Pollutants)

  • शाकनाशक, कीटाणुनाशक, कवकनाशक आदि विषैली दवाएं भूमि की उर्वरा-शक्ति को कम कर देती हैं। इनसे फसलों की वृद्धि भी रूक जाती है।
  • मृदा प्रदूषक पौधों के अंदर पहुंचकर खाद्य-श्रृंखला का एक अंग बन जाते हैं तथा मानव या जन्तु शरीर में यह अनेकों रोग पैदा कर देता है। यही कारण है कि कनाडा, स्वीडन, अमेरिका, हंगरी व डेनमार्क में डी.डी.टी. को प्रतिबंधित कर दिया गया है।

मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय (Control Measures of Soil Pollution)

  • कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम करना चाहिए।
  • कीटनाशक पदार्थों का उपयोग उचित एवं निर्धारित मात्रा में ही करना चाहिए।
  • फसलों पर छिड़की जाने वाली अनेकों प्रकार की जहरीली दवाओं का उपयोग यथा संभव कम करना चाहिए।
  • मृत जीवों के शरीर तथा कूड़ा-करकट को शहर से दूर मिट्टी के अंदर दबा देना चाहिए।
  • अवशिष्ट पदार्थों को पुनः चक्रीकरण करके उपयोगी पदार्थों में बदला जाए।
  • कीटाणुनाशक पदार्थ; जैसे- डी.डी.टी., गैमेक्सीन आदि; को अनाजों में सीधे नहीं मिलाना चाहिए। अनाजों को उपयोग में लाने से पहले उन्हें अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।
  • घर या शहर से निकले अपमार्जकों को नालियों के द्वारा शहर से दूर ले जाकर उपयोग में आने वाले जलाशयों में गिराना चाहिए।



Post a Comment

0 Comments